WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

40 करोड़ में बिकी गाय, किसान हुआ मालामाल जानिए इसकी खासियत और राज्य

<
Spread the love

40 करोड़ में बिकी ये गाय, किसान हुआ मालामाल, भारत के इस शहर से है कनेक्शन, जानिए इसकी खूबियां भी । रोजाना अपनी मंडी भाव फसलों की तेजी मंदी रिपोर्ट मौसम पूर्वानुमान, किसान योजनाएं और देश विदेश की खबरें पाने के लिए हमारी वेबसाइट पर रोजाना विजीट करें 👉 Mandi Xpert

<

यह भी जाने 👉 मूंग की उन्नत किस्म 2024 / पीले मोजेक रोग से खतरा कम और उत्पादन ज्यादा

Desi kapas top 6 variety 2024 / देशी कपास की टॉप 6 उन्नत किस्में

एक गाय 40 करोड़ रुपए में बिकी। जी हां, 40 करोड़ रुपए। इसे आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में एक किसान के घर में पाला गया था। ब्राजील के बाजार में इसकी यही कीमत तय की गई है।

अगर कोई आपसे पूछे कि सबसे महंगी गाय की कीमत कितनी होगी, तो आप शायद कहेंगे 5 लाख या 10 लाख।

लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि एक गाय 40 करोड़ में बिकी है। जी हां, 40 करोड़। इतना ही नहीं इसका भारत से गहरा नाता है। इसकी खूबियां जानकर आप भी दंग रह जाएंगे। जानवरों की नीलामी की दुनिया में यह एक नया रिकॉर्ड है।

यह भी जाने 👉

सिद्धू मूसेवाला के माता-पिता ने सरकार पर लगाया बड़ा आरोप जानिए परेशानी का कारण

जलकुंभी से किसान ने बनाई खाद जानिए खाद बनाने की पूरी प्रक्रिया

देशी गाय खरीद सब्सिडी योजना 2024 / देशी गाय खरीदने पर मिलेंगे 25000 रुपए

यह गाय आंध्र प्रदेश के नेल्लोर की है। इसे वियाटिना-19 एफआईवी मारा इमोविस के नाम से जाना जाता है।

ब्राजील में हुई एक नीलामी के दौरान इस गाय की कीमत 4.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर लगाई गई, जो भारतीय रुपये में 40 करोड़ रुपये के बराबर है। इसके साथ ही यह दुनिया में सबसे ज्यादा कीमत पर बिकने वाली गाय बन गई है।

जानवरों की नीलामी के इतिहास में यह बिक्री एक मील का पत्थर बन गई है। रोएंदार सफेद फर और कंधों के ऊपर एक विशिष्ट बल्बनुमा कूबड़ वाली यह गाय भारत की मूल निवासी है।

नेल्लोर जिले के नाम पर रखा गया नाम

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गाय का नाम नेल्लोर जिले के नाम पर रखा गया है। इस नस्ल की ब्राजील में काफी मांग है।

इस नस्ल को वैज्ञानिक भाषा में बोस इंडिकस के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह भारत की ओंगोल गाय की वंशज है, जो अपनी ताकत के लिए जानी जाती है।

खास बात यह है कि यह वातावरण के हिसाब से खुद को ढाल लेती है। इस नस्ल को सबसे पहले 1868 में जहाज से ब्राजील भेजा गया था। 1960 के दशक में यहां कई और गायें लाई गईं।

Leave a Comment

Don`t copy text!